बुरहानपुर (अकील ए आज़ाद) मध्य प्रदेश की ऐतिहासिक नगरी, पावर लूम उद्योग के लिए जानी जाती है। यहां प्रतिदिन चालीस हज़ार पावर लूम करघों से लाखों मीटर कपड़े का उत्पादन होता है, जिससे यह क्षेत्र टेक्सटाइल हब के रूप में उभरा है। लेकिन इस चमक-धमक के पीछे मजदूरों की जिंदगी बदहाली में डूबी हुई है। पावर लूम पर काम करने वाले मजदूरों को लंबे समय से उचित मजदूरी नहीं मिल रही है। महंगाई लगातार बढ़ रही है, पर मजदूरी वर्षों से लगभग स्थिर है। मजदूरों की स्थिति इतनी खराब है कि वे अपने परिवार का पेट भरने तक में असमर्थ हो रहे हैं। हालात यह हैं कि कई परिवारों को दो वक्त की रोटी तक नसीब नहीं हो रही है। मजदूरों ने अपनी मांगों को लेकर कई बार आवाज उठाई। पावर लूम बुनकर संघ ने मजदूरी बढ़ाने को लेकर आंदोलन भी किया, लेकिन वह भी असफल रहा। इसके पीछे एक बड़ा कारण मास्टर विवर्स की तानाशाही है, जो मजदूरी बढ़ाने को तैयार नहीं हैं। वे न उद्योग विभाग की सुनते हैं, न ही श्रम विभाग की। सरकारी तंत्र की निष्क्रियता ने मजदूरों की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। नतीजतन, मजबूर होकर मजदूरों को रोजी रोटी के लिए पलायन को मजबूर होना पड़ रहा है पड़ोसी राज्य महाराष्ट्र के इचलकरंजी व् अन्य सेंटरों पर पलायन को मजबूर है यह स्थिति न केवल श्रमिकों के लिए दुख़दाई है, बल्कि पूरे पावर लूम उद्योग के लिए भी खतरे की घंटी है। यदि समय रहते मजदूरों की मांगों को नहीं सुना गया, तो बुरहानपुर का यह समृद्ध उद्योग भी श्रमिकों के अभाव में चरमरा सकता है। मास्टर विवर्स बाजार में कपड़े का भाव नहीं मिलने और लागत अधिक आने के चलते मजदूरी नहीं बढ़ा रहे हैं जबकि महंगाई दिन ब दिन चरम पर है पावरलूम उद्योग की हालत सुधारने के लिए राजनीतिक इच्छा शक्ति नहीं होने के चलते यह उद्योग धीरे-धीरे बंद होने की कगार पर है यही कारण है कि राजनेताओं की इच्छा शक्ति नहीं होने के चलते एनटीपीसी की ताप्ती मिल कोरोना काल से बंद है उसे भी चालू कराने के कोई विशेष प्रयास नहीं किये जा रहे हैं शहर के पावरलूम उद्योग को जिंदा रखना हेतु मजदूरों की मजदूरी बढ़ाना भी आवश्यक है इसके लिए जिम्मेदारों को आगे आकर कार्य करना चाहिए!