बुरहानपुर (अकील ए आज़ाद) समान नागरिक संहिता को लेकर 22 वें विधि आयोग के द्वारा जो कार्यवही की गई है उस पर स्कॉलर अपना अलग.अलग मत रखते हैं लेकिन समान नागरिक संहिता को लेकर 22वें विधि आयोग द्वारा आमजन और धार्मिक संगठनों की राय मांगे जाने के बाद यह एक बार फिर चर्चा में है। स्वाभाविक है कि विधि आयोग की इस चर्चा पर राजनीतिक और धार्मिक समुदायों की ओर से बयानबाजी होना तय हैण् लेकिनए सवाल ये है कि देश में समान नागरिक संहिता से किसे दिक्कत है जब भी समान नागरिक संहिता की चर्चा होती है तो मुसलमानों के खिलाफ कुछ इस तरह से दुष्प्रचार सामने आता है कि अगर यूसीसी लागू हो गया तो मुसलमानों की धार्मिक आस्था खतरे में पड़ जाएगीण् जबकि देश के अन्य कानून सभी नागरिकों पर समान रूप से लागू होते हैंए जिससे किसी भी धर्म के अनुयायियों और उनकी धार्मिक मान्यताओं पर कोई असर नहीं पड़ता है। स्कॉलर का मानना है कि विवाह तलाक भरण.पोषण उत्तराधिकार विरासत आदि के मामलों में एकरूपता है तो यह किसी विशेष धर्म के विरुद्ध कैसे होगी संविधान में यूसीसी के लिए स्पष्ट दिशानिर्देश हैं कि राज्यों को इसे लागू करने का प्रयास करना चाहिए। यदि सरकार ऐसा करती है तो यह संविधान की मंशा के अनुरूप होगा। जब सरकार द्वारा तीन तलाक को अवैध घोषित किया गयाए तो समुदाय के अधिकांश लोगों ने इसे स्वीकार कर लिया क्योंकि यह उनके सर्वोत्तम हित में था। श्तीन तलाकश् पर प्रतिबंध को मुस्लिम मामलों में सरकार के हस्तक्षेप के रूप में भी प्रचारित किया गयाए इस संबंध में वास्तविकता यह है कि मुस्लिम महिलाओं के लिए वरदान बन गया। जहां समुदाय विशेष के एक वर्ग ने यूसीसी का विरोध कियाए वहीं पसमांदा समुदाय ने इसका स्वागत किया। इसके पीछे कारण यह है कि पसमांदा समाज शादी के मामले में भारतीय संस्कृति को अपनाता है शादी और बहुविवाह बहुत आसान और आम बात है।ठीक इसी तरह जब जम्मू.कश्मीर से 370 हटाया गया तो खूब हंगामा हुआण् भारत के हर राज्य का हर वर्ग पसमांदा समाज से हर मामले में बहुत आगे हैए लेकिन कश्मीर में ये अंतर और भी बड़ा हैण् केंद्र सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं सहित सामाजिक न्याय का आरक्षणए जो अब तक विशेषाधिकार के कारण पूरी तरह से लागू नहीं हो सका और जिसका सीधा नुकसान मूलनिवासी पसमांदा समुदाय को उठाना पड़ाए अब पूरी तरह से संतुष्ट नजर आता है । परिणामस्वरूपए कश्मीर की पसमांदा तबका भी मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की पसमांदा की तरह विकास के समान अवसरों का हकदार होगया है। अगर सरकार यूसीसी पर आगे बढ़ती है तो बुद्धिजीवियों का मानना है कि पसमांदा तबका इस पहल का स्वागत जरूर करेंगेण् समान नागरिक संहिता को लेकर स्कॉलर के बीच होने वाली आपस की चर्चा में यह निष्कर्ष निकल गए हैं कि आमतौर पर सामान्य कानून की तरह यह कानून भी अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा ही करेगा।