यूनिफॉर्म सिविल कोड देश की विविधता के विरुद्ध और मौलिक अधिकारों का हनन:,,,,, कांग्रेस प्रवक्ता

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बुरहानपुर (अकील ए आज़ाद) विधि आयोग के द्वारा समान नागरिक संहिता पर 14 जुलाई तक आपत्तियां आमंत्रित की गई है जिस के संदर्भ में कांग्रेस प्रवक्ता शेख रुस्तम के द्वारा यूनिफॉर्म सिविल कोड के विरुद्ध राष्ट्रपति महोदया के नाम अपर कलेक्टर शंकरलाल सिंघाड़े को एक ज्ञापन सौंपा दिया गया जिस में कांग्रेस प्रवक्ता शेख रुस्तम ने राष्ट्रपति महोदय से अनुरोध किया है कि केंद्र सरकार और कुछ राज्य सरकारों के द्वारा देश में सभी नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता बनाने की मंशा जताई जा रही है इसी संदर्भ में देश के 22वें विधि आयोग ने अपना कार्य प्रारंभ किया है जबकि 21 विधि आयोग ने यूनिफॉर्म सिविल कोड को अनावश्यक और अवांछनीय बताया है ।मौजूदा विधि आयोग अनावश्यक तौर पर इस दिशा में उपक्रम कर रहा है क्योंकि भारत जैसे देश जहां विश्व के सभी धर्मों के मानने वाले लोग रहते हैं सभी नागरिक अपने अपने धर्म और विश्वासों पर आधारित प्रथा और परंपराओं का पालन करते हैं विवाह तलाक उत्तराधिकार और गोद लेने से जुड़े हुए मामले शामिलहैं। दुनिया के सभी प्रमुख धर्मों के लोग हमारे यहां बसते हैं। 22 प्रमुख भाषाएं 398 अन्य प्रमुख भाषाएं और 16 से अधिक बोलियां बोली जाती है 6400 जातियां उपजातियां मौजूद हैं। यह सभी आपस में इंद्रधनुष की तरह मिले हुए हैं धर्मनिरपेक्ष भारत को अनेकता में एकता का असाधारण और सुंदर रूप प्रदान करते हैं यदि इस इंद्रधनुष एक भी रंग हटाते हैं तो यह सुंदर इंद्रधनुष बिखर जाएगा। इन परिस्थितियों में कैसे सभी के लिए एक समान संहिता की विधि कारगर हो सकती हैं। देश में सीआरपीसी और आईपीसी मौजूद है देश के सभी नागरिकों के लिए सिविल मामलों में देश के अलग-अलग हिस्सों में वहां की मान्यताओं के आधार पर कानून बने हुए हैं कोई नागरिक चाहे तो वह तलाक विरासत गोद लेने के मामले देश के कानून के हिसाब से अपना जीवन गुजार सकता है। कांग्रेस प्रवक्ता ने संविधान का हवाला देते हुए बताया कि अनुच्छेद 44 समान नागरिक संहिता से जुड़ा हुआ अनुच्छेद है इस अनुच्छेद को नीति निदेशक तत्व में शामिल किया गया है और यह बंधन कारी भी नहीं है इसे लेकर संविधान सभा में भी जबरदस्त मतभेद सदस्यों के बीच थे। हमारा संविधान का अनुच्छेद 13 कहता है इस सामाजिक मान्यताएं भी कानून है जिन्हें रद्द नहीं किया जा सकता और ना अनुच्छेद 13 को समाप्त किया जा सकता है फिर समान नागरिक संहिता से संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकारों का भी हनन होता है विशेषकर धार्मिक स्वतंत्रता से जुड़े अधिकार अनुच्छेद 25 से 29 सी है इससे प्रभावित होंगे समान नागरिक संहिता से संविधान की छठवीं अनुसूची के तहत पूर्वोत्तर राज्यों के नागरिकों के अधिकारों का भी हनन होगा समान नागरिक संहिता से समाज में ध्रुवीकरण और विभाजन की आशंका बनती है यहां एक गलत धारणा यह भी बनाई जा रही है कि यह सिर्फ धार्मिक अल्पसंख्यक इसका विरोध कर रहे हैं सच यह है कि यह पूरे देश के नागरिकों से जुड़ा हुआ विषय है लेकिन भाजपा इसे अपना राजनीतिक हथियार बनाकर ध्रुवीकरण करना चाहती है ऐसी कोई विधि जो संविधान प्रदत्त अधिकारों का हनन करें एवं देश के धर्मनिरपेक्ष संरचना उसके विविध सांस्कृतिक एकता को प्रभावित करें अस्वीकार होनी चाहिए।

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