बुरहानपुर:- सिलमपुरा स्थित स्वामिनारायण मंदिर में 150 वे सार्घ शताब्दी महोत्सव के तीसरे दिन भागवत कथा की शुरुआत संगीतमय कीर्तनों के साथ कथा प्रारंभ हुई इस अवसर पर सुंदर संचालन करते हुए शास्त्री भक्ति किशोरदासजी ने कहा कि तालीया बजाना स्वास्थ्य के लिए लाभ प्रद तो हैं कि लेकिन इस तालियों से भगवान प्रसन्न होते है और जो इन तालियों से उत्सव का आनंद लेते है भगवान भी उन भक्तों के घरों में उत्सव का मौका देते हैं, और उसी का परिणाम होता हैं कि हरीभक्तों के घरों में जन्मोत्सव से लेकर विवाह जैसे बडे बडे उत्सव संपन्न होते हैं, व्यासपीठ पर विराजित सत्यप्रकारशदासजी ने कहा कि सत्संग के बिना मन और ज्ञान दोनों ही अधूरे होते हैं इसलिए सत्संग में मन को लगाना चाहिए जिससे मनोबल और ज्ञान दोनों ही उचे होते है, यदि हमें आध्यात्मिक मार्ग में जाना हैं तो धर्म का ज्ञान होना अनिवार्य हैं, इस जगत में तेज तो सभी के पास होता हैं लेकिन संत के पास से तेज से हमे निर्मलता मिलती है, असूर के तेज से व्यक्ति को जला देता हैं और हनुमानजी में जो तेज है वह तो गुनातीत है यानि जिस मा से जन्म लेते हैं वह मां भी भाग्यशाली हो जाती हैं जिसके बेटे के पास विशेष प्रकार का तेज होता हैं, और ऐसे ही मां देवकी भाग्यशाली हैं की जिनके घर कृष्ण जैसे बेटे ने जन्म लिया, भागवत के जन्मोत्सव में स्वयं भगवान अपने स्वरूप को प्राप्त करने के लिए आते है, जिस तरह मंदिर परिसर और मंडप में बादलों की गडगडाहट के बिच भगवान कृष्ण नन्द बाबा की टोकरी में आए तब भक्तों ने जय कैन्हया लाल की जय घोष के साथ कृष्ण जन्मोंत्सव मनाया स्वामिनारायण संप्रदाय के 9वे गादीपति राजकिय दर्जा प्राप्त ध.धू.1008प.पू. आचार्यश्री राकेश प्रसाददासजी मंदिर पंहुचेगे और भक्तों को दर्शन देंगे, मिडीया प्रभारी गोपाल देवकर ने बताया कि रोज महोत्सव के दौरान अलग-अलग झाकीयों का आयोजन भी किया जा रहा हैं, इसी के अंतर्गत कृष्ण जन्मोत्सव के बाद भगवान शंकर भी कृष्ण के दर्शन के लिए पंहुचे और तांडव नृत्य भी किया, वहीं व्यासपीठ पर विराजित सत्यप्रकाशदासजी ने कहा कि जीवों के लिए कथा प्रांगण दाम जैसे होता हैं, इस धान में ही हमें आनंद की प्राप्ती हो सकती है, आनंद हमारे अंदर ही होता हैं लेकिन उसे हम बाहर ढूंढते हैं, भागवत कथा मृत्यु को सुधारने वाले कथा है मृत्यु से डरना नहीं चाहिए कथा सुनने से ही मौक्ष मिल सकता है, भगवान अपनी पहचान केवल भक्त को ही करवाते हैं और भगवान को भी केवल भक्त ही पहचान सकते हैं, कथा में जिन्हे रूची होती हैं उन्हे ना तो मौत से डरना चाहिए और ना ही जगत की चिंता करना चाहिए व्यक्ति का समय हर वक्त एक सा नहीं रहता आज दुःख है तो कल सुख भी रहेगा, ना तो दुःख रोज रह सकता है और ना ही सुख रोज रह सकता है इस सुख और दुःख को भगवान ने ही बनाया हैं उसमें दुःख की मात्रा कम और सुख की मात्रा अधिक होती है भगवान अपने आपसे अपने भक्तों से ही प्रेम करते है, सुख में तो सब साथ होते हैं किंतु दुःख में केवल भगवान ही साथ होते है, कथा के अंत में महाआरती के साथ महाप्रसादी का आयोजन भी किया गया, तथा कार्यक्रम का सफल संचालन भक्ति किशोर स्वामी और मंदिर ट्रस्टी सोमेश्वर मर्चेंट ने किया उक्त जानकारी मंदिर के मिडीया प्रभारी गोपाल देवकर ने दी।