इस्लाम में तालीम की एहमीयत का एक अलग स्थान नए शिक्षा सत्र में अपर्याप्त हुए दाखले

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बुरहानपुर (अकील ए आज़ाद) शिक्षा का नया सत्र चालू हो चुका है लेकिन स्कूलों में दाखले अब भी अपर्याप्त हुए है, जब कि मजहबे इस्लाम और कुरआन हदीस में तालीम को अफजल मान कर तालीम हासिल करने की ताकीद की गई है लेकिन बावजूद इस के मुसलमान अब भी बच्चों की तालीम पर उतना ध्यान नही दे रहा है जितना उसे देना चाहिए। शिक्षा ग्रहण करने के लिए सूरए इकरा में साफ तौर पर तालीम हासिल करने की ताकीद की गई है। हुजूर ए अकरम ने भी तालीम के लिए ताकीद की है तालीम चाहे दीनी हो या फिर दुनयावी उसे हासिल करना है। तालीम की एहमियत का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि जंग ए बदर के बाद कैद हुए लोगों को सिर्फ इस लिए रिहाई दी गई थी के वह तालीम दां थे ताकि उनकी रिहाई के बाद वह दूसरों को तालीम दे सके। आज के माहौल में देखा गया है कि मुस्लिम अल्पसंख्यक परिवार अपने बच्चों की शिक्षा पर ध्यान कम दे रहे है जब कि हुकूमत ए वक्त की ओर से उर्दू हिंदी अंग्रेजी के स्कूल कायम किए गए है, इस के साथ ही प्रायवेट स्तर पर भी ऐसे स्कूल है जहां प्रवेश लेकर शिक्षा हासिल की जा सकती है, इस में किसी प्रकार का भेदभाव नही है फिर भी मुस्लिम परिवार अपने नबी की इस नसिहत को भूल अपनी दोजून की रोटी की जुगत में बच्चों को तालीम के जेवर से मेहरूम रखे हुए है जब कि दिनी और दुनयावी तौर तरीको से जिन्दगी गुजारने के लिए तालीम का होना जरूरी है यह बात कुरआन और हदीस में भी मिलती है, बावजूद इस के नजर अंदाज कर देखने में यह आ रहा है कि स्कूलों में अब भी दाखले बहुत कम हुए है, अप्रेल से शिक्षा का सत्र चालू हो चुका है लेकिन इस के बाद भी यहां दाखलों की कमी है मुस्लिम अल्पसंख्यकों की तालीम के लिए अनेक संस्थाऐं काम कर रही है लेकिन फिर भी यहां सफलता अभी दूर है, सरकार के अल्पसंख्यको के शिक्षा के एजेंडे में अनेक सरकारी और गैर सरकारी संस्थाऐं काम कर रही है। 10वीं और 12वीं सदी में इस्लामी तालीम खूब आगे बडी इस दौर में अनेक मजहबी तालीम की संस्थाओं का निर्माण हुआ, उस समय पाश्च्मे मुल्क वैज्ञानिक तौर पर पिछडे हुए थे तब इस्लामी तालीम का विकास हुआ, इस में असहमती और सम्मान रचनात्मक आलोचनाऐं भी स्वीकार की गई। इल्म हासिल करना हर मुसलमान का हक है, तालीम की जरूरत और एहमीयत के बारे में कुरआन और हदीस में कई बार जिक्र किया गया है ऐसा नही है कि जदीद दौर के मुसलमान कुरआन और हदीस के फरमान को नही मानते पर अब भी मुसलमानों में शिक्षा की कमी को आसानी के साथ महसूस किया जा सकता है, जिस पर ध्यान देने की जरूरत है।

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