समान नागरिक संहिता के महत्व पर जानकारों की राय

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बुरहानपुर (अकील ए आज़ाद) देश में इन दिनों समान नागरिक संहिता को लेकर बड़ी बहस छिड़ी हुई है विधि आयोग देश में समान नागरिक संहिता लागू करने को लेकर इस दिशा में काम कर रहा है जिसके लिए विधि आयोग में आपत्तियां भी आमंत्रित की है समान नागरिक संहिता को लेकर सर्वाधिक विरोध मुस्लिम समाज की ओर से सामने आया है ऐसे में जब विधि आयोग देश में समान कानून लागू करने को लेकर अपने तर्क वितर्क धार्मिक अनुबंधों के साथ पेश कर रहा है तब जबकि कानून के जानकार भी इसे सभी धर्मों के विपरीत मान रहे हैं ऐसे में समान नागरिक संहिता एक सदी से भी अधिक समय से भारत में गहन बहस और चर्चा का विषय रहा है। इसका उद्देश्य व्यक्तिगत कानूनों का एक एकीकृत कर स्थापित करना है जो सभी नागरिकों पर लागू होता है, चाहे उनकी धार्मिक संबद्धता कुछ भी हो। जबकि विवाह, तलाक, विरासत, गोद लेने और उत्तराधिकार जैसे मामलों को नियंत्रित करने वाले व्यक्तिगत कानून पारंपरिक रूप से धार्मिक रीति-रिवाजों और प्रथाओं पर आधारित रहे हैं, यूसीसी धार्मिक सीमाओं के परे सभी के लिए एक समान कोड बनाना चाहता है। इस्लामी परिप्रेक्ष्य से यूसीसी के महत्व का पता लगाते हैं और मुसलमानों पर इसके प्रभाव के बारे में चिंताओं का समाधान करते हैं।इस्लाम में देश के कानून का पालन करना एक धार्मिक कर्तव्य माना जाता है। मुसलमानों को न केवल अल्लाह और पैगंबर मुहम्मद के प्रति बल्कि उस अधिकार के प्रति भी वफादार रहने का हुक्म देता है जिसके तहत वे रहते हैं। इस्लाम ही नहीं बल्कि विभिन्न धर्मों के अनुयायियों को धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देता है। समान नागरिक संहिता का कार्यान्वयन इस्लामी शिक्षाओं का खंडन नहीं करता यूसीसी मुसलमानों सहित सभी नागरिकों को कानून के तहत समान अधिकार और सुरक्षा प्रदान करता है। राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देते हुए महिलाओं और धार्मिक अल्पसंख्यकों को शामिल करें। डॉ. बी.आर. अम्बेडकर ने भारतीय संविधान का निर्माण करते समय एक वांछनीय लेकिन स्वैच्छिक पहलू के रूप में समान नागरिक संहिता की कल्पना की थी, जिसे तब लागू किया जाना था जब राष्ट्र इसे स्वीकार करने के लिए तैयार हो। भारत में समान नागरिक संहिता को लेकर एक बड़ी बहस छिड़ी हुई है जिसका विरोध मुस्लिम समाज के द्वारा खुलकर किया जा रहा है बावजूद इसके इस दिशा में विधि आयोग समन्वय बनाने के प्रयास में लगा है!

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