बुरहानपुर (अकील ए आज़ाद) मध्य प्रदेश और राजस्थान के आदिवासी बहुल इलाकों में मनाया जाने वाला भगोरिया मेला सिर्फ एक मेला नहींए बल्कि एक अनूठी परंपरा और प्रेम उत्सव है। यह त्योहार खासतौर पर भील और भिलाला जनजातियों द्वारा होली से पहले एक हफ्ते तक मनाया जाता है। मध्य प्रदेश के झाबुआए अलीराजपुरए धारए बड़वानी खरगोन बुरहानपुर जिलों में यह मेले के रूप में आयोजित होता है।भगोरिया की जड़ें प्राचीन परंपराओं में हैं। यह न केवल व्यापार और मेल.मिलाप का अवसर ही नहीं बल्कि इसे प्रेम विवाह की स्वतंत्रता से भी जोड़ा जाता है। इस मेले में युवा लड़के.लड़कियां पारंपरिक परिधानों में सज.धजकर आते हैं। अगर कोई युवक.युवती एक.दूसरे को पसंद कर लेते हैंए तो वे भागकर शादी कर लेते हैंए जिसे समुदाय बाद में स्वीकार कर लेता है। इसी के चलते इसे ष्प्रेम का मेलाष् भी कहा जाता है। जहां आदिवासी के और यूतियां एक दूसरे को पसंद कर मेले से भाग कर शादी कर लेते हैं तथा इस शादी को बाद में परिवार के लोग स्वीकार कर लेते हैं मेले में पारंपरिक गैर नृत्य किया जाता है युवक.युवतियां फगुआ गीत गाते हैं और ढोल.मांदल की धुन पर नाचते हैं। लोगों के आपसी मेलजोल बढ़ाने के साथ.साथ कृषि औजारए आभूषण और घरेलू सामान भी इस मेले में खरीदते हैं। वही इस हाट बाजार में महुआ की शराब और पारंपरिक व्यंजनों का भी विशेष स्थान होता है। लेकिन वर्तमान समय में परिस्थितियों के बदलते अब ऐसे मेलों में महुआ शराब पर पाबंदी लगाने की मांग महिलाओं की ओर से उठाई जा रही है जबकि शराब के बगैर इस मेले की रौनक और युवाओं का उत्साह फीका हो जाएगा यह मेला पर्यटन का केंद्र भी बन गया है। सरकार इसे आदिवासी संस्कृति के संरक्षण और प्रचार का माध्यम बना रही है। भगोरिया हाट अब सिर्फ परंपरा नहींए बल्कि एक लोक महोत्सव बन चुका हैए जहां हजारों की संख्या में पर्यटक भी जुटते हैं।