बुरहानपुर (अकील ए आज़ाद) पिछले दिनों देश के सर्वोच्च न्यायालय ने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने की पुष्टि की है जो एक महत्वपूर्ण संवैधानिक निर्णय है, जिससे लोकतांत्रिक शासन और संवैधानिक सर्वोच्चता के सिद्धांतों को बढ़ावा मिला है क्योंकि राष्ट्र राज्य का दर्जा बहाल करने औ जम्मू-कश्मीर में चुनाव कराने की दिशा में आगे बढ़ रहा है, यह फैसला न केवल संवैधानिक तरीकों से मतभेदों को सुलझाने की नई प्रतिबद्धता का भी प्रतीक है। इसके अतिरिक्त, यह भारतीय मुसलमानों के लिए अलगाववाद पर एकता अपनाने की महत्वपूर्ण आवश्यकता पर प्रकाश डालता है, यहां स्कॉलर इस निर्णय को लेकर एकमत है कि संवैधानिक प्रक्रियाओं और संवाद का पालन सभी समुदायों के लिए अधिक समावेश और प्रतिनिधित्व को बढ़ावा देता है। जम्मू और कश्मीर में विधानसभा चुनाव लोकतांत्रिक व्यवस्था के तहत संपन्न हों ताकि यहां लोकतंत्र बहाल हो सके इसके अतिरिक्त, सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का कानूनी गलियारों से हटकर यह एक मिसाल कायम करता है, जो भारतीय मुस्लिम समुदाय में बदलाव का संकेत देता है, इसके अलावा, अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी करने का निर्णय इसके वास्तविक लाभों को लेकर बहस का विषय स्कॉलर्स के बीच जरूर रहा है यहां तक कि आलोचकों ने भी इस बात पर सहमति व्यक्त की है कि इस फैसले से निस्संदेह जम्मू-कश्मीर का देश के बाकी हिस्सों के साथ अधिक एकीकरण हुआ है,जिस से आर्थिक विकास, ढांचागत प्रगति और केंद्र सरकार की योजनाओं और नीतियों तक व्यापक पहुंच को बढ़ावा मिला है वैधानिकताओं से परे, यह फैसला एकता का अवसर प्रस्तुत करता है। जिससे भारत के मुसलमानों ने अनुच्छेद 370 के निरस्तीकरण और शीर्ष न्यायपालिका द्वारा इसकी पुष्टि से एक मूल्यवान सबक सीखा है- कभी-कभी, सरकार को हाशिए पर मौजूद वर्ग के उत्थान के लिए कडे कदम भी उठाना पड़ते है। ताकि भविष्य उज्ज्वल बन सके।