तांगा चालकों के समक्ष है रोटी रोजी की समस्या कोरोना और बेरोजगारी ने तोड़ी कमर

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बुरहानपुर (अकील ए आज़ाद) दस्तक शहर की शाही सवारी कहलाने वाला तांगा और उससे जुड़े परिवार कभी शान के साथ अपनी जिंदगी का गुजर बसर तांगा चलाकर खुशहाल जिंदगी गुजारा करते थे परंतु समय के साथ यातायात के साधन बदले और युग के आधुनिक होने के साथ टांगो की जगह अब ऑटो रिक्शा व चार पहिया वाहनों ने ले ली है जिसके चलते शहर की यह शाही सवारी अब रोजगार की मोहताज होकर रह गई है जहां आधुनिक साधनों ने तांगा चालक घोड़ा सवारी वालों का व्यवसाय छीन लिया है वही अब पिछले 2 वर्षों से कोरोना संक्रमण की मारने थोड़े बहुत चलने वाले व्यवसाय को ठप कर दिया है संक्रमण के चलते शहर में लोगों का आवागमन कम होने से यह व्यवसाय बहुत अधिक प्रभावित हुआ है कभी शहर की शान और आवागमन का मुख्य साधन कहलाने वाला तांगा अब केवल बाहर से आने वाले बोहरा समाज के सैलानियों के मनोरंजन का साधन बनकर रह गया है शहरी क्षेत्र के बहुत कम लोग अब तांगे की सवारी करना पसंद करते हैं जिससे शहर के भीतर अब टांगों का चलन कम हो गया है दो दशक पूर्व तक शहर में लोग तांगे की सवारी करना पसंद करते थे परंतु धीरे-धीरे यातायात के आधुनिक साधन बढ़ने से तांगा चालक परिवार अब अपनी रोजी रोटी को लेकर परेशान होने के साथ अपनी पहचान खोता जा रहा है शासन द्वारा इन्हें किसी प्रकार की मदद नहीं मिलने से यह तांगा चालक अपना और घोड़े का पेट भरने के लिए दिन भर बस स्टैंड और शहर के मुख्य चौराहों पर खड़े होकर सवारी मिलने का इंतजार करते देखे जा सकते हैं पर इन परिवारों की आर्थिक तंगी की ओर किसी जनप्रतिनिधि और नेता का ध्यान नहीं है और ऐसी कोई योजना भी शासन की नहीं है जिससे इन्हें अपना रोजगार मिल सके तांगा चालकों की इस आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए जनप्रतिनिधियों को आगे आकर कार्यवाही करना चाहिए।

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