बुरहानपुर (अकील ए आज़ाद) मुसलमानो के मामलात को सरकार के समक्ष उठाने के लिए अगर कोई संस्था है तो वह मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड है कुछ विद्वान बोर्ड को लेकर अपनी अलग राय रखते हैं इस सवाल का जवाब ढूंढने के लिए बोर्ड के स्थापना के कारण और उद्देश्य पर भी गौर कर लेना उचित होगा, जब हुकूमत ने कानूनसाजी के समय शरई कवानीन को बेअसर करने की कोशिश की। संविधान द्वारा बने सरकार के लोकतांत्रिक स्वरूप एवं लोकतांत्रिक रूप से चुनी हुई संसद जहाँ क़ानून बनाए जाते हैं, और जिसे मुसलिम भी अपने स्वतंत्र मतों से चुनते हैं. मुसलिम मआशरे में तमाम गैर इसलामी रस्म व रिवाज़ मिटाने का ज़िम्मा भी इसी पर आईद होता है पसमांदा मुसलमानों की भाषा, सभ्यता एवं संस्कृति भारतीय क्षेत्र विशेष की रही हैं जब कि इसलाम में वर्णित सिद्धांत किसी भी क्षेत्र विशेष की रस्म व रिवाज के पालन करने की छूट, इस शर्त के साथ दिया है कि वो इसलाम के मूल सिद्धांत से न टकराते हों। बोर्ड का यह भी मानना है कि वह इस देश में बसने वाले सभी मुसलमानों प्रतिनिधि सभा है। जो उनके व्यक्तिगत एवम् सामाजिक मूल्यों को, जो इसलामी शरीयत क़ानून द्वारा निर्धारित किये गए हैं. देख-भाल करने का कार्य करती है।इसके अतिरिक्त बोर्ड मुसलिमों की तरफ़ से देश के बाह्य एवम् आंतरिक मामलों में न सिर्फ अपनी राय रखता है बल्कि देशव्यापी आंदोलन, सेमिनार एवम् मीटिंग के द्वारा कार्यान्वित भी करता रहा है। जिसे सरकार सहित भारतीय जनमानस. मीडिया एवं बुद्धिजीवी वर्ग भी इस बात को स्वीकार करता है। भारतीय मुसलिम समाज सिर्फ़ मसलकों फिरकों में ही बंटा है मुसलिम समाज मसलकों और फिरकों में बंटे होने के साथ साथ नस्ली और जातिगत आधार पर भी बंटा है, लेकिन बोर्ड इसे मान्यता नहीं देता ऐसा भी नहीं है कि बोर्ड भारतीय मुसलिमों के जातिगत भेद से अवगत नहीं है मुसलिम पर्सनल लॉ को लेकर कुछ विद्वानों की अपनी अलग राय है वह ऐसा मानते हैं कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड देश की सभी मुसलमान की प्रतिनिधि संस्थान नहीं है लेकिन यह भी सच है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ से संबंधित सारे मामलों को मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के द्वारा ही सरकार के समक्ष रखा जाता रहा है!